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ओ भैए, मेरे कान न खा! / कन्हैयालाल मत्त
Kavita Kosh से
ओ भैए, मरे कान न खा,
मत कर अब ज्यादा चबर-चबर!
रीते-थीथे मत गाल बजा,
गप्पू दादा के पास न जा,
गाजर-मूली का जिक्र न कर,
अंबरी सेव का लूट मजा।
खा-पीकर हो जा शेर बबर,
मत कर अब ज्यादा चबर-चबर!
बिक रही मिठाई भी सस्ती,
क्या चैन-चबैनों की हस्ती?
बस्ती का हर बच्चा खुश है,
सब ओर चमन में है मस्ती।
है सुना रहा अखबार खबर,
मत कर अब ज्यादा चबर-चबर!
चिमचिमा न बन, मत आँख मींच,
सच का न अधिक अब गला भींच,
पढ़ने-लिखने में चित्त लगा,
उजले भविष्य का चित्र खींच।
ले कागज, पैंसिल और रबर,
मत कर अब ज्यादा चबर-चबर!
चलता-चल सब में रला-मिला,
कुछ हाथ हिला, कुछ पैर हिला,
इस हँस-खुशी के मौसम में,
कंजूस न बन, कुछ खिला-पिला।
कर लिया बहुत दिन खूब सबर,
मत कर अब ज्यादा चबर-चबर!