ओ मेरी मृत्यु ! / सपना भट्ट
ओ मेरी मृत्यु !
अभी स्थगित रख अपनी आमद ।
कि अभी मैंने देखा नहीं समन्दर कोई
अभी किसी वर्षावन में भटकी नहीं —
आर्द्रता से भरा — ख़ाली मन लेकर ।
अभी किसी ऐसी यात्रा की सुखद स्मृति मेरे पास नहीं
कि जिसमें रेलगाड़ी में ही होती हों
तीन सुबहें और दो रातें ।
अभी हुगली के रेतीले तट पर
नहीं छोड़ी मैंने अपने थके हुए पैरों की भटकन ।
अभी नौका में बैठाकर पार ले जाते
किसी मल्लाह की करुण टेर ने मुझे बाँधा नहीं ।
अभी मेरे पास नहीं है दस्तायेवस्की का समूचा साहित्य
अभी मैंने किरोस्तामी को पूरा जाना नहीं ।
अभी माजिद मजीदी की एक फ़िल्म
राह तकती है मेरी — फ़ोन की गैलरी में चुपचाप ।
अभी मेरा एक दोस्त जूझ रहा है हर साँस के लिए
अभी उसके माथे पर ठण्डे पानी की पट्टियाँ नही रखीं
उसे दिलासा नहीं दिया ।
अभी मेरी बेटी बच्ची ही है — नन्ही-सी
अभी मैंने उसे दोस्त नहीं बनाया
अभी पूछा भर है — प्रेम में है क्या तू मेरी बच्ची ?
अभी अपने प्यार के विषय में बताने का साहस नहीं जुटाया...
और तो और
अभी उस पगले से भी है एक ही मुलाक़ात
अधूरी और सकुचाई हुई
अभी उसने मेरा हाथ नहीं थामा
अभी उसने मुझे चूमा नहीं ।