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ओ मेरे हत्यारे / लीना मल्होत्रा

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ओ मेरे हत्यारे--
मेरी हत्या के बाद भी
जबकि मर जाना चाहिए था मुझे
निर्लिप्त हो जाना चाहिए था मेरी देह को
उखड़ जाना चाहिए था मेरी साँसों को
शेष हो जाना चाहिए था मेरी भावनाओं को
मेरे मन का लाक्षाग्रह धू-धू करके जलता रहा
मेरी उत्तप्त, देह संताप के अनगिनत युग जी गई

क्योंकि धडकनों के ठीक नीचे वह पल धडकता रहा
प्रेम का
जो जी चुकी हूँ मैं
वही एक पल
जिसने जीवन को ख़ाली कर दिया

समझ लो तुम

नैतिकता अनैतिकता से नही
विस्फोटक प्रश्नों
न ही तर्कों वितर्को से

तुमसे भी नहीं

डरता है प्रेम
अपने ही होने से ...

वह बस एक ही पल का चमत्कार था
जब पृथ्वी पाग़ल होकर दौड़ पड़ी थी अपनी कक्षा में
और तारे उद्दीप्त होकर चमकने लगे थे
करोड़ो साल पहले ...
और जल रहीं है उनकी आत्माएँ
उसी प्रेम के इकलौते क्षण की स्मृति में टँगी हुई आसमान में

और शून्य बजता है साँय-साँय