भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओ म्हारे नाथ सुण मेरी बात / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ओ म्हारे नाथ सुण मेरी बात
या चन्द्रकिरण जोगी तनै
तन मन धन तै चाह्वै सै
नीच्चे नें कमंद लटका दी चढ़ ज्या
क्यों वार लगावै सै


मनै साँची साँची बात बता दी
न्यूँ दिल में धर ल्यूँ
ओ नये नाथ तनै वर ल्यूँ
मैं तेरे तै गंधर्व ब्याह कर ल्यूँ
मेरे जी में आवै सै
नीच्चे नें कमंद लटका दी चढ़ ज्या
क्यों वार लगावै सै...