ओ म्हारो गांव नीं है / मनोज पुरोहित ‘अनंत’
जिण स्हैर में हूं
वो भोत बडो है
कटोरी आगै
हटड़ी जित्तो ठांव
लूण-मिरच मसाला दांई
भांत-भांत रा है अठै लोग
स्हैर आछो है
पण ओ म्हारो गांव नीं है।
लांबी-लांबी सड़कां है
चौक-चौराया है
पण गळी-गुवाड़ कोनी
हेत-प्रीत रो कोनी अठै वासो
आदमी फिरै निसांसो
कोई ठौड़ इसी कोनी
जठै कोई राड़ कोनी
ओ म्हारो गांव नीं है।
ऊंची-ऊंची हेली है
एक-एक हेली पण पहेली है
हेली आगै कोनीं पगडांडी
सूनी है सड़कां
कोई खाळा नीं
नीं है कोई छांव
पण ऊंचा ओळखीजै दांव
ओ म्हारो गांव नीं है।
गांव में
अजै ई खेल है
लूण-लकड़ी-तेल
कुरां डंडो-लूणियां घाटी
कंचा-गोळी, कळी-जोटा
अंटपिल्ला-खड़ी घुच्ची
नक्का पूर
राड़ सूं दूर
स्हैर में
खेलण नैं खेल भोत है-
क्रिकेट है
वीडियो गेम्स है
पज्जल्स है
पण लोग खेलै
आपा-धापी रा खेल
मिनखपणै माथै
पईसो भारी
ठाह नीं कद किण माथै
ओ म्हारो गांव नीं है।
म्हारो गांव तो
मिनखपणै रो नांव है
एक-एक ठौड़ रो नांव
याद करां तो चेतै आवै मिनख
म्हादै वाळी गळी, काळियै वाळी डिग्गी
देवलै रो गाडो, छोगै रो गोधो
रुकमा री सांढ, प्रभु रो खेत
च्यारूंमेर हेत ई हेत ।
म्हारै गांव में
बाजरी री रोटी
गुवारफळी-काचरी
खेलरा-फोफळियां रो साग
गुळ-रोटी रो चूरमो
दूध-छा-राबड़ी
स्हैर में पण
ग्रासी ग्राउंड है
पिज्जा-बरगर, जंक फूड
चाऊमिन-इडली डोसो
कचोरी-समोसो तो है
पण कोनीं भरोसो
ओ म्हारो गांव नीं है।