ओ म्हारो धन (तीस हाइकू) / नीरज दइया
(1)
काळजै लाधै
थांरी ओळूं गांठड़ी
ओ म्हारो धन।
(2)
खरूंट कोनी
अमर घाव ओळूं
मनां में रिसै।
(3)
धीजो तो दूर
मिल परा करै बै
जख्मां नै हर्या।
(4)
मन है मन
म्हारै सारै कोनी
रळै का टळै।
(5)
हर उमड़ै
मन रै आंगणियै
बरसै लोर।
(6)
बिखै सूं कोनी
तूट्यो काठो काळजो
थारी आंख सूं।
(7)
हिचकी आवै
कुण करै है याद
सगळा बैरी
(8)
म्हां में हुई बा
किण ढाळै कथ दूं
भाई हा बैरी।
(9)
मांय है कुण
लखदाद मन नै
धुखूं बारै ई।
(10)
कांई बांटूं म्हैं
ऊजळा राम-राम
दुष्टां सूं चोखा।
(11)
अंधारो भोगूं
कदै कदास उगै
सुख-सूरज।
(12)
बीज काचर
टाबर ऊभो रोवै
भीड़ खातर
(13)
थे गुमग्या, का
हाथ छुड़ा बिछाळै
गुमग्यो हूं म्हैं।
(14)
पैली तो मारै
रोंवतै नै देख’र
पुचकारै, मा।
(15)
आस किण सूं
जद ’सांवरियै’ ई
कर्या निरास।
(16)
बठै थूं रैवै
पीड़ री जड़ अठै
ऐ हांसै, जठै।
(17)
दीठ है थांरी
कै किंयां ओळखो थे
जीवण-जुद्ध।
(18)
भाई मुळकै
म्हैं रोवूं, साथै रोवै
म्हारा भायला।
(19)
लाखूं है बातां
कांई-कांई कथूं
थे अणसैंधा।
(20)
हर उमड़ै
उमड़्यां हुवै कांई
हदां है पोची।
(21)
प्रीत सोधां तो
दिखै घर-गळी में
है कांवतरो।
(22)
लाड घणो है
बकारणो तो दूर
बरजै ई नीं।
(23)
हुयां दिखतो!
म्हैं सोध-सोध थाकूं
मिनखपणो!
(24)
जद नीं मर्या
आंगळ्यां घाल’र तो
बाजां जीवता।
(25)
पीड़ परखूं
मगरां में दीवी थे
जोर सूं थाप।
(26)
काळा कागद
नेह रै हरफा सूं
हुया कदैई।
(27)
लोग बेराजी
कलम-कविता सूं
कवि है राजी।
(28)
निरांयत नीं
कवि नै आय सकै
कलम थकां
(29)
कवि री पीड़
पांगळा है आखर
किंयां कथूं म्हैं।
(30)
कविता कठै
ऐ तो म्हारा हाइकू
टोपा पीड़ रा।