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ओ रोळ राज रो डंडो / विनोद सारस्वत
Kavita Kosh से
ओ रोळ राज रो डंडो, मरूधरियै में रोळ मचावै।
काकड़िया सा कंवळा पर, हुकम आपरो चलावै।।
ओ रोळ राज रो डंडो.......
लूंट मचावे धोळै दुपारै, भोळा नैं ओ भरमावै।
कूड़-कपट री करै कमाई, धन-धन आपरी करावै।।
ओ रोळ राज रो डंडो......
बांठ-बांठ में बैठा हाकम, गिंडका ज्यूं गरळावै।
उपरा-उपरी करै चूरमा, पिंडी पकड़ खा ज्यावै।।
ओ रोळ राज रो डंडो......
कागदां रा कारीगर अे, नाडी-नाडोळयां खोदावै।
थोथो पेट भरै नही यांरौ फैर पाछी बुरावै।।
ओ रोळ राज रो डंडो......
भांत-भंतीला टेक्सां है माणस हेटो दब रैयौ।
रोळ राज रा रासा देख, पांणी पतळो पड़ रैयौ।
ओ रोळ राज रो डंडो......