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ओ संझा मैया ! / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
ओ ऽ ऽ ऽ ऽ ! ओ संझा मैया ।
देख, वहाँ इठलाती,
लहरों पर बलखाती
तट से लो, छूट चली
नैया हो नैया ।
ओ संझा मैया ! ओ संझा मैया !
छप-छप पतवारों की,
संग-संग मछुआरों की-
स्वर लहरी गूँज चली,
हैया हो हैया !
ओ संझा मैया ! ओ संझा मैया !
पर, यह क्या बात हुई ?
डगमग क्यों नाव हुई ?
कैसी यह हवा चली
दैया रे दिया ।
लाज राख ओ मैया !
ओ संझा मैया ! ओ संझा मैया !