ओ समय के देवता! इतना बता दो / बलबीर सिंह 'रंग'
ओ समय के देवता! इतना बतादो-
यह तुम्हारा व्यंग्य कितने दिन चलेगा?
जब किया, जैसा किया, परिणाम पाया,
हो गये बदनाम ऐसा नाम पाया;
मुस्कुराहट के नगर में प्राण ऊबे,
आँसुओं के गाँव में आराम पाया;
विविधताओं के जनक! इतना बतादो-
यह तुम्हारा ढंग कितने दिन चलेगा?
ओ समय के देवता...
ढूँढ़ता है रूप, तुम मिलते नहीं हो,
गंध रचती छंद, तुम खिलते नहीं हो;
साधनाओं का समर्पण हो रहा है,
तुम मगर पाषाण हो, हिलते नहीं हो;
वंचनाओं के वणिक! इतना बतादो-
यह हमारा संग कितने दिन चलेगा?
ओ समय के देवता...
यह पहेली कुछ समझ में आ न पाई,
हर कली के साथ कांटों की सगाई;
तुम अकेली धूलि का आशीष ले लो,
मैं सितारों से दिला दूँगा बधाई!
सर्जनाओं के रुचिर रूपक! बतादो-
यह तुम्हारा रंग कितने दिन चलेगा?
ओ समय के देवता...