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ओ हवा! / योगेन्द्र दत्त शर्मा

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ओ हवा!
ओ हवा!
ओ महकदार, ठंडी सुहानी हवा!

यों पहाड़ी न चढ़
आ, धरा पर उतर,
इन घनी, मौन
अमराइयों से गुजर।

डालियों को हिला
बात कर, खिलखिला,
आम के कान में कह कहानी, हवा!

देख, तू यों न बनना
कभी गर्म लू,
तन झुलसने लगे
हम करें हाय-फूँ।

तू हमें प्यार दे
और पुचकार ले,
दोस्ती की यही है निशानी, हवा!

खोजते हम तुझे
बाग में, ताल पर,
चल तमाचा लगा
धूप के गाल पर।

तू मनाए हमें
हम मनाएँ तुझे,
गड़बड़ाए न यारी पुरानी, हवा!