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औचक डंका पड़ी मन में कर होशियारी हो / दरसन दास

औचक डंका पड़ी मन में कर होशियारी हो।
काल निरंजन बड़ा खेलल बा खेलाड़ी हो।।
सुर नर मुनी देवता लो के मार के पछाड़ी हो।
ब्रह्मा के ना छोड़ी वेद के विचारी हो।।
शिव के ना छोड़ी जिन वेद के बिचारी हो।।
शिव के ना छोड़ी जिन बइठल जंगल झाड़ी हो,
नाहीं छोड़े सेतरूप, नाहीं जटाधारी हो।
राजा के ना छोड़ी, नाहिं प्रजा भिखारी हो।।
मोरहर देके बान्ही जमु पलखत देके मारी हो।
बिधि तोहर बावँ भइल तू देल प्रभु के बिसारी हो।।
कहे दरसन तोहे जुगे-जुगे मारी हो।।