औचक - भौचक / राम सेंगर
कपट और माया का
नंगा नाच है
किसको मग़र यक़ीन हमारी बात में ।
संशय के रोगी होते
तो देखते
चोर और कुत्ते का पहरा ध्यान से ।
यही ग़नीमत
फूटी नहीं विवेक की
दीख रहा सब आरपार, ईमान से ।
दुनिया बदल गई
निष्पाप विचार की,
ज़िन्दा रहना
रहा न अपने हाथ में ।
किसको मग़र यक़ीन हमारी बात में ।
ऊँची घाटी
चढ़ तो गए गुमान में
' राम ' यहाँ था
इस बस्ती की कीच में ।
जिसने खोजा
उसको बेशक़ मिल गया
फँसा हुआ वह
दो पाटों के बीच में ।
चरमपन्थियों के
विकास की धूम है,
औचक-भौचक
हम अपनी औक़ात में ।
किसको मग़र यक़ीन हमारी बात में ।