भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

औरतें / येहूदा आमिखाई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: येहूदा आमिखाई  » औरतें

एक औरत
जो मेरी माँ की
तरह लगती है
देखती है
एक आदमी को जो लगता है
मेरी तरह

गलतियाँ भी अद्भुत होती हैं और आसान
बालकनी में गाती हुई लड़कियां
टांगती हैं
अपने कपड़ों को बहार सूखने के लिए
--वे पताकाएं प्रेम की

धागों के कारखाने में
वे बनाते हैं रस्सियाँ महीन धागों को बटकर
जीवन के पुलिंदे में
आत्माओं को बंधने के वास्ते

दोपहर की बहती हवा
मानो पूछती हैं कि 'तुमने क्या किया
किस बारे में तुम बात करते थे'

पुराने पथरीले घरों में जवान औरतें अब दिन-दहाड़े करती हैं
वह सभी कुछ
जिसे उनकी माओं की माएं रातों में करने का ख्वाब देखती थीं
वह आर्मेनियाई चर्च खाली है
और बंद
किसी परित्यक्त औरत की तरह
उधर महिला सुधार-गृह में
लडकियां गाती हैं
-- 'अपनी महान दयालुता में
ईश्वर लाएगा मृतकों को जीवन में वापस'
और अपने सूखे कपडे तहाती हैं।

अँग्रेज़ी से अनुवाद  : निशान्त कौशिक