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औरत आउर हाथी / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
औरत त हए
अथाह बल के मलकीनी
लेकिन ऊ अप्पन बल
कहियो न पहचानइअऽ
हरदम ओकरा अधीन रहे में
लगईअऽ अप्पन सुख
कहियो ऊ रहअऽ
अप्पन बाबू के अधीन
हुनकर इज्जत बन के
त कहियो अप्पन मरद के
आबरू बन के
त कहियो अप्पन बेटा के
मानइअऽ कहला गाय बन के
ऊ चिता तक जाइत
अप्पन बल न पहचान पबइअऽ
जेना कि हाथी
एतना बलवान हो क
अप्पन डोर
महावत के हाथ में दे देइअऽ
अप्पन ईच्छा से
अप्पन सूढ़ के नीचे क के
अपना ऊपर बइठबइअऽ महावत के
आ देइअऽ ओकरा अप्पन
रस्सा-जंजीर
अपना के बन्हावेला
फेनू सूढ़ से खोज-खोज के
अंकुश देइअऽ अपना माथा में
चुभावे खातिर
ओन्हाइते जेना कि-
औरत जनम देइअऽ मरद के
लेकिन मरद के अधीन रहे में
अप्पन सुख पबइअऽ।