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औरत और इंसान / अंजू शर्मा
Kavita Kosh से
सोच के एक जरूरी मुकाम पर
अक्सर ये लगता है कि
क्यों न सोचा जाए
उन सभी संभावनाओं पर
जहाँ एक औरत और एक इंसान
बन जाएँ समानार्थी शब्द
एक औरत बने हुए ही
बहुत ही सहज, सुगम बल्कि है
एक इंसान बनना
बहुत से मूल अधिकार स्वतः ही
भर देते हैं व्यक्तित्व की झोली,
जबकि एक इंसान बने हुए ही
एक औरत बनने में
बहुत कुछ है जो पीछे छूट जाता है...