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औरत के हाथ में न्याय / शुभा
Kavita Kosh से
औरत कम से कम पशु की तरह
अपने बच्चे को प्यार करती है
उसकी रक्षा करती है
अगर आदमी छोड़ दे
बच्चा माँ के पास रहता है
अगर माँ छोड़ दे
बच्चा अकेला रहता है
औरत अपने बच्चे के लिए
बहुत कुछ चाहती है
और चतुर ग़ुलाम की तरह
मालिकों से उसे बचाती है
वह तिरिया-चरित्तर रचती है
जब कोई उम्मीद नहीं रहती
औरत तिरिया-चरित्तर छोड़कर
बच्चे की रक्षा करती है
वह चालाकी छोड़
न्याय की तलवार उठाती है
औरत के हाथ में न्याय
उसके बच्चे के लिए ज़रूरी
तमाम चीज़ों की गारन्टी है।