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औरत को यदि / मनीषा जैन

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औरत को यदि मिल जाए
प्रिय के अनुराग का स्वर
उसी राग को वह
बना देगी प्रेम का सागर

आकाश में उड़ा लेगी
आशाओं की पतंगे
आँखों में रोशनी के जुगनु
पेड़ो पर टांग देगी
उम्मीदों के दिये
घर में फुदकेगें
तमन्नाओं के खरगोश

चांद और सूरज हर रोज
पानी भरने आयेंगे उसके घर

औरत को यदि मिल जाए
उसके हिस्से का घर
तब सच होते हैं
आँखों के सपने
जो बन जाते है उसके अपने
वह खड़ी हो पाती है
जमीं पर पैर जमा कर।