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औरत / प्रिया जौहरी

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जब औरत के पास देने को कुछ नहीं बचता
तब वह नानी और दादी बन जाती है
सारा जीवन सारा यौवन दे देने के बाद
सिर्फ तकलीफ ही रह जाती है
शरीर के हर पोर में दर्द
जीवन का सारांश उम्र की झुर्रियों में नज़र आता है
ऐसा सारांश जिसका भावार्थ किसी ने समझा ही नही
खुद को गिराते हुए घर को संभालते हुए
घर औरत को खा जाता है
औरत के अंदर की दुनिया
अंदर ही अंदर बुनी जाती है
रोज-रोज मिलती
नही मिलेगा जिक्र
इनका कहीं
नही है इनका कोई विभाग या दस्तावेज ।