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और, हमदोनों / अनीता सिंह
Kavita Kosh से
रात, चंदा का ईशारा
और, हमदोनों।
मगन मन वंशी गगन पर
जब बजाता है कलाधर
गोपिका-सी तारिकाएं
क्षितिज से आती निकलकर
रास जैसा हो नज़ारा
और, हमदोनों॥
दपदपाती फुसफुसाती
जुगनुओं की अनकही
सुन रही रजनी अकेली
चातकों की बतकही
रात ने आँचल पसारा
और, हमदोनों॥
मुस्कुरा कर एक भँवरा
सो गया है कमलदल में
थीर जल-सा थीर होकर
युग को जी लें एकपल में
रेत, दरिया का किनारा
और, हमदोनों॥