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और अँधेरा / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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पदस्थ हैं: लालटेन, चिमनी,
माटी का दिया;
वहाँ
हर कोना प्रकाशित करने का
दायित्व
बल्बों और मर्करी-राड्स ने लिया
पर
अँधेरा हर जगह दूना हो गया
हर प्रयास
छाया से छाया का छूना है,
अन्धकार के बेटे, वहाँ
शेब्रलेट-डाज में दिन-दहाड़े अफीम बेचते हैं,
गन्दे इश्तिहार बाँटते और ट्रेनों की जंजीरें खींचते हैं,
झूठी अफवाहों में समुद्र की गहराइयाँ घोलते हैं,
हवा में
पिस्तौलें उछालते,
संगीत में ‘जाज’, नृत्य में ‘राक इन रोल’
चित्रकला में ‘आप’
और साहित्य में-
‘बीटनिक’ पीड़ी को आधुनिक
बोलते हैं;
यहाँ;
खुद लिखते हैं लेखपालों के खसरे
और थाने में रोजनामचे,
अस्पतालों से
उड़ा लाते हैं दवाइयों के बॉक्स,

अकेले में छात्रों को देते हैं-
सेक्सी थीम के उपन्यास
नींद की गोलियाँ;
छात्राओं को
तुलसी की वेदी पर
कैक्टस उगाने
और
रामायण के पन्ने से चूल्हे सुलगाने की सलाह देते हैं;
समझाते हैं रूढ़ियों का अर्थ:
संगीत-आधिक्य से
काव्यार्थहीन हैं सूर के भजन, कबीर की साखी
बोलते-बोलते अर्थ खो चुके हैं
चूड़ी, अक्षत, सिन्दूर और राखी।