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और एक अंतिम रचना! / मीना चोपड़ा
Kavita Kosh से
वह सभी क्षण
जो मुझमें बसते थे
उड़कर आकाशगंगा
में बह गए।
और तब आदि ने
अनादि की गोद से उठकर
इन बहते पलों को
अपनी अंजली में भरकर
मेरी कोख में उतार दिया।
मैं एक छोर रहित गहरे कुएँ में
इन संवेदनाओं की गूँज सुनती रही।
एक बुझती हुई याद की
अंतहीन दौड़!
एक उम्मीद!
एक संपूर्ण स्पर्श!
और एक अंतिम रचना!