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और कहाँ का ठौर जावैगी फसल / नवीन सी. चतुर्वेदी

और कहाँ का ठौर जावैगी फसल।
खेत-खलिहान’न सों गुम होती फसल॥

अब तौ कंकर ही मिलंगे भोज में।
क्यों पराये हाथ में सौंपी फसल॥

लहलहाती दिख रही है ठाठ सों।
अब तौ सब देस’न में परदेसी फसल॥