और कहाँ का ठौर जावैगी फसल।
खेत-खलिहान’न सों गुम होती फसल॥
अब तौ कंकर ही मिलंगे भोज में।
क्यों पराये हाथ में सौंपी फसल॥
लहलहाती दिख रही है ठाठ सों।
अब तौ सब देस’न में परदेसी फसल॥
और कहाँ का ठौर जावैगी फसल।
खेत-खलिहान’न सों गुम होती फसल॥
अब तौ कंकर ही मिलंगे भोज में।
क्यों पराये हाथ में सौंपी फसल॥
लहलहाती दिख रही है ठाठ सों।
अब तौ सब देस’न में परदेसी फसल॥