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और कुछ न था / उत्‍तमराव क्षीरसागर

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कल जहाँ
हमने तय की थीं दि‍शाएँ
अपने-अपने रास्‍तों की

वहाँ,
जल में तैरती हुई स्‍मृति‍याँ थीं
और कुछ न था

स्‍मृति‍यों में
फड़फड़ाती हुई मछलि‍याँ थीं
और कुछ न था

मछलि‍यों में
भड़कती हुई तृषा थीं
और कुछ न था

तृषा में
कि‍लोले करते हुए मृग थे
और कुछ न था

मृगों में
मैं था, तुम थी, सारा संसार था
और कुछ न था
                                - 1999 ई०