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और कोई जो सुने ख़ून के आँसू रोए / 'बाकर' मेंहदी
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और कोई जो सुने ख़ून के आँसू रोए
अच्छी लगती हैं मगर हम को तुम्हारी बातें
हम मिलें या न मिलें फिर भी कभी ख़्वाबों में
मुस्कुराती हुई आएँगी हमारी बातें
हाए अब जिन पे मुसर्रत का गुमाँ होता है
अश्क बन जाँएगी इक रोज़ ये प्यारी बातें
याद जब कोई दिलाएगा सर-ए-शाम तुम्हें
जगमगा उट्ठेंगी तारों में हमारी बातें
उन का मग़रूर बनाया है बड़ी मुश्किल से
आईना बन के रहें काश हमारी बातें
मिलते मिलते यूँ ही बे-गाने से हो जाएँगे
देखते देखते खो जाएँगी सारी बातें
बो बहुत सोचें तड़प उट्ठीं मगर ऐ ‘बाक़िर’
याद आईं तो न आईं ये तुम्हारी बातें