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और क्या चाहिए / सुधेश
Kavita Kosh से
कैसी कोरी धूप खिली
कैसी सुबक कली खिली
जीवन में और क्या चाहिए।
ऊपर गगन चादर तनी
नीचे घास का बिछौना
मदिर-मदिर पवन बहा
फूल झूलता सलोना।
जीवन की बाटिका में
मधु रंगों के मेले में
मन को और क्या चाहिए।
नए मन प्राण मिले
धरती आसमान मिले
इतनी बडी दुनिया में
जीने के सौ सामान मिले।
सिन्धु में इक बून्द जैसी
नन्हीं-सी जान को
जीवन में और क्या चाहिए।
दिन में तो दौड़ धूप
जाना पड़ेगा काम को
सारे दिन मशीन बने
थक लौटना है शाम को ।
रात को लो मीठी नींद
सपने रंगीन देखो
जीवन में और क्या चाहिए।