और नहीं कछ करनों हम कों बस यै रस्म निभानी है।
तुम सों मिलनौ है और मिल कें दिल की बात बतानी है।
अपने हिरदे के हाथन में चाहत की चरखी लै कें।
छोह-छतन पै आय हू जाऔ प्रीत-पतंग उड़ानी है॥
पल-पल हाँ-हाँ ना-ना कर कें ऐसें तौ उकसाऔ मत।
आग नहीं लगवानी हम कों चिंगारी बुझवानी है॥
आमत ही जाबन की बतियाँ कर कें छतियाँ फारौ मत।
आज तुम्हारे हाथन अपनी किस्मत हू लिखबानी है।
एक बेर फिर सुन लेउ हम सों नफरत-बफरत होनी नईं।
"हम कों जो या काम कौ समझै वा की यै नादानी है"॥