भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
और नहीं कछ करनों हम कों बस / नवीन सी. चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
और नहीं कछ करनों हम कों बस यै रस्म निभानी है।
तुम सों मिलनौ है और मिल कें दिल की बात बतानी है।
अपने हिरदे के हाथन में चाहत की चरखी लै कें।
छोह-छतन पै आय हू जाऔ प्रीत-पतंग उड़ानी है॥
पल-पल हाँ-हाँ ना-ना कर कें ऐसें तौ उकसाऔ मत।
आग नहीं लगवानी हम कों चिंगारी बुझवानी है॥
आमत ही जाबन की बतियाँ कर कें छतियाँ फारौ मत।
आज तुम्हारे हाथन अपनी किस्मत हू लिखबानी है।
एक बेर फिर सुन लेउ हम सों नफरत-बफरत होनी नईं।
"हम कों जो या काम कौ समझै वा की यै नादानी है"॥