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और फिर / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
हाथों में हाथ लेकर
सागर-किनारे फैली
गीली रेत पर
छोड़ते जाना अपने पैरों के निशान
दूर तक निकल जाना
और फिर
थककर, जैसे निढाल
गिर जाना
निरखते रहना
निहारते रहना
एक-दूसरे को।