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और मैं उत्तर हो आया / ओमप्रकाश सारस्वत

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यूँ तो मै किसी से भी
प्यार करने को स्वयं में मुक्त हूँ
पर जग ने टोका कि यह वैधानिक रीत नहीं
अतः मैंने तायी, चाची, माँ, बहन
पिता,पत्नि,भाई, पुत्र कई रिश्तों में
बाँट दिया मानव संज्ञा को
और बँटा मैं स्वयं इन्हीं रूपों में

क्योंकि जगती थी प्रश्न
और मैं उत्तर हो गया

पर ये तो सब जिस्मी नाम हैं
चीज़ों की मोटी पहचान हैं
पर प्यार का आकर्षण
केवल कल्पित नामों पर निर्भर नहीं करता

तुमने देखा होगा
जब देह ही देह से
गुपचुप समझौता कर लेती है
तब दुनिया के सभी शास्त्र
गूँगे हो जाते हैं

क्योंकि देह की माँग का
हमारी सामाजिक सीमा से
खुलकर विरोध है

माफ करना
इस मामले में अभी हम
वस्त्रों के जंगल में,आदिमानव के
मुक्त भोग के लिए ऋणी हैं

इसलिए जब ’मै’ ही ‘तू’ से
एक होनी की हामी भर देती है
तब ’तू’ से ‘मैं’ का स्पर्श
धमनियों की तुष्टि नहीं

किंतु तृषा के लिए यह साकी बन जाता है
और स्पर्श के उन अदभुत क्षणों में
नाम,रूप लय हो कर सो जाते हैं
और जगता है इकसार,एक बस
प्यार
प्यार

क्योंकि ; प्यार समाधि की शंका नहीं
समाधान है
आत्मा की आँखें हैं नेति-नेति की महाउक्ति है
 देह के मुखर सुख की मौन-संभुक्ति है
इसीलिए तो प्यार योगाचार है

किन्तु यह मात्र जिस्मों की रस्म नहीं
पूजा का नैवेदय है, अर्चना के माध्यम से
सत्य की दौड़ है, सत्य के द्वार तक

यहाँ रूप नाम गौण हैं प्रेम के देश में
फिर भी इक रीत है यहाँ नाम देकरप्यार करने की
समाज में नामों की माँग है

इसीलिए मैने
शायद तुमने भी
जग से कई रूपों में जोड़ा है निज को
कई सम्बन्धों के वृत्तों में मोड़ा है निज को
पर सम्बन्धों से क्या होता है ?
सम्बन्धों से प्यार नहीं मरता
तुझ पर बस ‘मैं’ को
मुझ में बसे ‘तू’ को
कोई छल नहीं सकता

जग के न्यायालय में सम्बन्धों की चर्चा होती है
प्रायः नाम पूछते हैं
और नामों की मर्यादा में बंदी इस सारे समाज को
तुम्हारे बागी होने पर
मौत की सज़ा हो जाएगी
इसलिए कोई सा भी एक नाम धर लो
निज को जग के दोषों से ख़ुद मुक्त करा लो
क्योंकि समाज की प्यार-संहिता
बड़ी सजग है
फिर एक समाज बनाने में
तुम्हारा भी नाम रहेगा

इसीलिए सम्बन्धों की फसल उगाई है मैने
दुनियाँ की लाज बचाई है मैने
और उसमें तुम्हारा भी नाम अगर आता हो
तो मुझ पर उंगली मत धरना क्योंकि इसके लिए
यह जग ही उत्तरदायी है