और यह कविता यात्रा (कवि का कथ्य) / कुमार रवींद्र
कविता होना समय के साथ जीना और समयातीत होना दोनों है । और इसके लिए हमें उन तमाम संधियों से रू-ब-रू होना पड़ता है, जो उम्र भर की मानुषी-यात्रा की एक लाज़िमी शर्त हैं । कविता होकर उन संधियों को जीना साँसों के प्रवाह को उनसे निरुद्ध न होने देना है। अनिरुद्ध सहज बहना ही जीने की वास्तविकता है, निरर्थक के बीच सार्थक होना है और यह सहज बहना कविता का मर्म भी है । जीवन में कुछ पाने की आकाँक्षा से हम किसिम-किसिम की संधियाँ करते हैं । ये संधियाँ एक ओर तो मानुषी प्रयास को उत्प्रेरित करतीं हैं और दूसरी ओर ये ही मनुष्य के भावनात्मक विकास की सीमारेखा भी बनाती हैं। कविता होने के क्षण में हम इन दोनों ही स्थितियों को एक साथ जीते हैं; इनके माध्यम से आदिम अर्थातों को खोजते हैं और समय में रहकर भी समयातीत होते हैं । कविता का यही विरोधाभास तो उसकी अनन्य सिद्धि है, उसकी चरम उपलब्धि है। कविता की रहस्यमयी अभीप्सा एवं रागात्मक अंतर्दृष्टि मनुष्य को देवत्व की भूमिका में कुछ क्षणों के लिए पहुँचा देती है।
अपने इस छठे कविता-संग्रह में मैंने इसी देवत्व की यानी सार्थक मनुष्य होने की भूमिका की तलाश की है।
जिस भावभूमि से इस संग्रह के गीतों ने मुझे जोड़ा है, वह है अनवरत जिज्ञासा की, समग्र सहानुभूति की, अनन्य सार्थकता की । फ़िलवक्त की चिंताएँ इन कविताओं के बाह्य परिवेश को बनाती हैं, किन्तु इनकी अंतर्निहित संचेतना समूची मानुषी आस्तिकता की है, जिसके बरअक्स फ़िलवक्ती चिंताएँ एवं निजी अनुभूतियाँ एक नई आकस्मिकता-से-परे की सार्थकता प्राप्त कर लेती हैं । इन गीतों की घटनाएँ मेरी होकर भी मेरी नहीं हैं । मैं इनमें उपस्थित होकर भी अनुपस्थित हूँ । वस्तुतः ये घटनाएँ उस समग्र मानुषिकता की हैं, जो सामूहिक-सामुदायिक अवचेतना का हिस्सा हैं और जो मुझमें भी हैं ।
इन कविताओं को कथ्य और कहन, दोनों दृष्टियों से नवगीत कहा जाना मुझे रुचिकर लगेगा, उपयुक्त भी । नई कहन के इन गीतों का प्रयोजन तमाम उन प्रश्नों से जूझना है, जिन्हें काल-यक्ष ने हर संवेदनशील व्यक्ति से बार-बार पूछा है और जो हमारी आहत मानुषिकता से ही उपजते हैं । इनकी कहन शिद्दत से जिये उन्हीं प्रश्नों के अनुरूप आकुल एवं आतुर हैं । संबोधनात्मक नाटकीय प्रस्तुति आज के गीत की विशिष्टता है । वही यदि इन गीतों में मिले तो कोई अचरज नहीं है ।
आभारी हूँ, उन तमाम सन्दर्भों का जो इन कविताओं में उपस्थित हैं और जिनसे इन्हें जीने की ललक उपजी । उन अग्रज, समायु, अनुज रचनाधर्मियों का भी, जो जाने-अनजाने इन गीतों के प्रेरक तत्त्व बने और जिन्होंने इन्हें पूरे ममत्व से स्वीकारा। और अंत में, नमन प्रकाशन के भाई नितिन गर्ग का विशेष आभारी हूँ, जिन्होंने इस संग्रह को भव्य रूपाकार देकर इस योग्य बनाया कि यह सभी को रुचिकर लग सके ।
- कुमार रवीन्द्र
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