भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
और हम सूरज हुए / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
छुआ तुमने
और हम सूरज हुए
हुए यह घटना
सखी, बरसों हुए
हम कँटीले झाड़ थे
सरसों हुए
देह में
अनगिन नये अचरज हुए
हुईं साँसें
धूप की पगडंडियाँ
याकि...
पूनो में नहाई घाटियाँ
दिन किसी
त्योहार की सजधज हुए
फूल की वह छुवन
अब इतिहास है
एक मीठी याद की
बू-बास है
नेह-पाती लिखे
हम कागज हुए