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और है क्या यहाँ आँसुओं के सिवा / डी. एम. मिश्र
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और है क्या यहाँ आँसुओं के सिवा
जिंदगी ने दिया क्या ग़मों के सिवा।
ख़्वाब तो एक से एक देखे मगर
मेरी आंखों में क्याे गर्दिशों के सिवा।
जो मिला वो मिला नाम भर के लिए
कौन है मेरी तन्हाइयों के सिवा।
बोझ उठता नहीं, पाँव बढ़ते नहीं
जिंदगी में है क्याी मुश्किलों के सिवा।
कोई मकसद नहीं, कोई मंजिल नहीं
शेष भी क्या है मजबूरियों के सिवा।
तुम हो उस पार तो,मैं भी इस पार हूँ
बीच में अब है क्या दूरियों के सिवा।