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और है रिश्ता बनाना और निभाना और है / सूरज राय 'सूरज'

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और है रिश्ता बनाना और निभाना और है।
ख़र्च करना और है यारों कमाना और है॥

वक़्त ने हर कीमती रिश्ते को सस्ता कर दिया
दोस्ताना और था अब दोस्ताना और है॥

ठीक है परदेस जाना ख़्वाहिशों के वास्ते
ख़्वाहिशों के वास्ते ईमान जाना और है॥

है बहुत आसान दुनिया को रुलाना सौ दफ़ा
इक दफ़ा लेकिन किसी को भी हंसाना और है॥

बाज़मीनों के लिये आसान है ख़ैरात भी
बाज़मीरों के लिये एहसां उठाना और है॥

मौत ने शाहों को भी नंगा लिटाया क़ब्र में
ज़िंदगी का सच अलग है और फ़साना और है॥

सुन रहा हूँ राज़ मेरे आँसुओं के खुल रहे
ऐ लबों थोड़ा-सा तुमको मुस्कुराना और है॥

फ़लसफ़ा ये काश दुनिया का समझ लेता कोई
जीतना उसको अलग उसको हराना और है॥

एक पल जीने की धुन में रोज़ मर जाते हैं हम
ज़िंदगी अब भी हमें क्या आज़माना और है॥

कह रहा है आज "सूरज" ये दिये से, यार अब
रौशनी के वास्ते ख़ुद को जलाना और है॥