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औ जग कूड़ो पण साचा थे / सांवर दइया
Kavita Kosh से
(नानकराम सुतोड़ अर भोजराज छींपा खातर)
औ जग कूड़ो पण साचा थे
मिलसो फेरूं कद पाछा थे
हरख्यो मन जावण द्यो म्हनै
करो क्यूं आज मन काचा थे
मिल परो बिछड़णो तो पड़सी
भूलो क्यूं थांरा वाचा थे
पानो घाल्यो तो आ सुणलो
चालू राखो ऐ खाता थे
मिलया एक सूं एक आछा
पण आछोड़ा में आछा थे