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कंकाल / नवीन निकुंज
Kavita Kosh से
धरती रोॅ आकाश तलक
उड़तै खली धुइयाँ हो
कोय नै बचतै देखै लेॅ
श्मशाने रं दुनियाँ हो ।
मारियो केॅ तेॅ मरै लेॅ पड़तै
कहिनें बम केॅ बनावै छै ?
है फुललोॅ फुलवारी केॅ
कहिनें कोय उजाड़ै छै ?
प्रेमोॅ केरोॅ गाछ रोपलियै
फल आबेॅ बौरावै छै
है मुँहझौसा पछिया नें तेॅ
सौंसे गाछ जरावै छै ।
आकाशोॅ मेॅ राॅकेट लड़तै
जहर हवा मेॅ घुलतै हो
पानी लेॅ प्राणी के प्राण
छटपटाय केॅ मरतै हो ।
लोरोॅ सेॅ भिंजलोॅ अँचरा मेॅ
बुतरु सिनी बिलखतै हो
तेसरोॅ विश्वयुद्ध जे ऐतै
दुनियाँ धू-धू जरतै हो ।
इखनी बम के घूर लगाबोॅ
आरो तापोॅ भइया हो
जललोॅ जाय छौं लुत्ती सेॅ घर
चेतबा आबेॅ कहिया हो ?