कंक्रीट में गुलाब / रघुवंश मणि
साफ़ धुली ठण्डी फ़र्श पर
उससे भी कठोर कंक्रीट का गमला
जिसमें भूमि का भ्रम पैदा करती
थोड़ी-सी मिट्टी
जंगल का भ्रम पैदा करती
हरी पत्तियाँ और टहनी
उसकी चोटी पर एक गुलाब
घर के बाहर है गुलाब
मगर सड़क की असुरक्षा में नहीं
हवाओं के विरुद्ध जीवनबीमा है चारदीवारी
पशुओं के विरुद्ध जी० पी० एफ़० है गेट
थोड़ी-सी खाद मिलती है महंगाई-भत्ते की तरह
हल्का-सा पानी ओवरटाईम की तरह
ज़रूरत के मुताबिक
इसके लिए ही बनाया गया है दो कमरे का फ़्लैट
एक में सोते हैं बच्चे
दूसरे में पति-पत्नी
दिन में जो हो जाता है ड्राइंग-रूम
इसी गुलाब की खातिर
पति रोज़ भीड़ चीरता जाता है आफ़िस
पत्नी दिन भर करती है काम
बच्चों को भेजा जाता है स्कूल
पति-पत्नी और बच्चों के बीच उगा
यह गुलाब चमकता है
आफ़िस से लौटे थके पति की मुस्कान में
बोर हुई पत्नी की औपचारिकताओं में
क़िताब में दबे बच्चे की अस्वाभाविक हँसी में
हफ़्ते में सन्डे की तरह है यह गुलाब
दीवारों पर टँगे इच्छाओं के चित्र की तरह
थकान के बाद साथ चाय पीते मित्र की तरह
समय निकालकर देखे गए मैटिनी शो जैसा
गर्मी में बच्चे की एक आइसक्रीम की तरह
पुलिस के डण्डे की तरह है यह
हमारे और पागल कर देने वाली वानस्पतिक सुगन्धों के बीच
जो जंगलों की स्वतन्त्र सघनता में ही जनमती है
जिसकी एक छाया भर नहीं है यह
हममें और इन्द्रधनुषी रंगों के बीच
शासनादेश की तरह टंकित
धरती की सोंधी प्रफ़ुल्लित बरसाती महक के
विस्तार के चारों ओर काँटेदार बाड़ की तरह
एक आवर्जन भर है
कंक्रीट में उगा
लगभग कंक्रीट-सा
यह गुलाब