भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कइसे के आईं कान्हा तोहरी सेजरिया / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
कइसे के आईं कान्हा तोहरी सेजरिया से डरवा लागे ना।
हमरो धरके ला करेजवा से डरवा लागे ना।
कल पा परेला सखिया निनिया हेरइली रतिया भूली गइले ना।
मोरा सोरहो सिंगारवा रतिया भूली गइलें ना/कान्हा।
एही रे इरीखवे जमुना डूबी धँसी जइबों से महुरवा खइबों ना।
तेजब आपन हम परानवाँ से महुरवा खइबों ना/कान्हा।
सून भइलें मोर भवनवाँ से परदेसिया भइलें ना/कान्हा।
कहत महेन्दर स्याम मानऽना कहनवाँ से कइसे अइहें ना।
मोरा मांग के सेनूरवा राम से कइसे अइहें ना।