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कइसे जितई किसान / ब्रजनंदन वर्मा
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खेते में सूख गेलई धान, कइसे के जितई किसान।
रउदी में चटकल हए धरती के छाती,
बेटी जुआन भेलई रखाब कइसे थाती,
हथिआ के बुन्नी लेल, संसरी में परान।
चितरा न चित पर तनिको सोहाएल,
बईमान बदरा स∙ घिर-घिर के आएल,
बरसल न∙ अब ले, इन्नर भगवान।
दसई-दीवाली सभ्भे बीत गेलई,
छठ के बरतिओ में संइआ न∙ अलइ,
जाति धरम कइसे, बचतइ ईमान।
नाहर में तनिको न∙ चिरूआ भर पानी,
सरकार लेइत हई टैक्स मनमानी,
साओ-महाजन के कस गेल कमान।
गाँओ के गाँओ अब कंगाल भेलई,
मुट्ठी भर दाना अब मोहाल भेलई,
लगइअ लमहर गो जिनगी के आसमान।
एसो न रब्बी के बोआई भेलई,
दाही सूखी में इहो साल गेलई,
मने में जार गेलई मन के अरमान।