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कई ख्व़ाब मुस्कुराए सरे शाम बेख़ुदी में / नक़्श लायलपुरी
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कई ख्व़ाब मुस्कुराए सरे शाम बेख़ुदी में
मेरे लब पे आ गया था तेरा नाम बेख़ुदी में
तेरे गेसुओं का साया है के शामे-मैकदा है
तेरी आँख़ बन गई है मेरा जाम बेख़ुदी में
कई बार चाँद चमके तेरी नर्म आहटों के
कई बार जगमगाए दरो-बाम बेख़ुदी में
जिसे ढूँढ़ती रही हैं मेरी बेक़रार आँख़े
मेरे दिल ने पा लिया है वो मक़ाम बेख़ुदी में
वो ख़याल कौन-सा है के बना हुआ है पैकर
किसे ‘नक्श़’ कर रहा हूँ मैं सलाम बेख़ुदी में