कई बार वैसे तो हम भी छपे-उपे अख़बारों में,
फिर भी कब शामिल हो पाए बड़े-बड़े फ़नकारों में !
पढ़ने को पढ़ लेते हम भी लेकिन क़द ही कम निकला,
कुछ ऊँचे आदर्श टँके थे पत्थर की मीनारों में !
बिक जाते बावक़्त अगर हम मालामाल हुए होते,
नाम लिखा ही लेते अपना ऊँचे इज़्ज़तदारों में !
चाह न होती मैदानों की बियाबान में क्यों होते,
पहुँचे हुए अगर हम होते तो होते बाज़ारों में !
जुड़े नहीं होते धरती से तो हम भी उड़ते फिरते,
लोग उड़े फिरते हैं जैसे हवाबाज़ गुब्बारों में !