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कई सदियाँ साथ जीते / गुलाब सिंह
Kavita Kosh से
आप ने भेजी बधाई
कहा हमने धन्यवाद
कठिन पूरे वर्ष पर
कितना सरल संवाद!
सोचते हैं सिन्धु-मोहन जोदड़ो
और जीते बम्बई नगरी,
सिविल लाइन के तिराहे पर
गाँव की गोरी खड़ी रख कमर पर गगरी,
आँख का सुख आधुनिक
प्राचीन मन का स्वाद।
लाल-पीले रेशमी धागे उड़ाते
रात फव्वारे मचलते हैं,
सात रंगों से सजे फुटपाथ पर
कुछ अँधेरे जागते करवट बदलते हैं
रोशनी इतनी कि जैसे-
धूप का अनुवाद।
कई सदियाँ साथ जीते
गया यह भी वर्ष,
आज भी तो मौत ही है
शांति का उत्कर्ष,
गोलियों का क्या गिला
क्या बमों का परिवाद?