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कई सदियों से, कई जनमों से / नक़्श लायलपुरी
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कई सदियों से, कई जनमों से
तेरे प्यार को तरसे मेरा मन
आ जा
आ जा के अधूरा है अपना मिलन
कई सदियों से ...
राहों में कहीं, नज़र आया
अपने ही खयालों का साया
कुछ देर मेरा मन, लहराया
फिर डूब गई आशा की किरण
आ जा
आ जा के अधूरा है अपना मिलन
कई सदियों से ...
सपनों से मुझे, न यूँ बहला
पायल के खोए गीत जगा
सुनसान है जीवन की बगिया
सूना है बहारों का आँगन
आ जा के अधूरा है अपना मिलन
कई सदियों से ...