भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कउन सिंह की थेरिया / बघेली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बघेली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कउन सिंह की धेरिया की बड़ी-बड़ी अंखियां
ओठवन चुयै ओगार
कउन सिंह के पुतवा कै मउरी सजति है
भंवरी लेत बसेर
एक चिठियाँ लिखि भेजइं हो कउन कुंवरि
दिहा राजा दूलहे के हाथ
तुम्हरे मउरी मां भंवरी बसति है
हमूं जोगिन व्है जाब
एक चिठियां लिखि भेजइं कउन सिंह
दिहा रानी कन्या के हाथ
बन केरी भंवरी बनै उड़ि जइहैं
हमरा तुम्हरा होय विआह
कौन आयं दूलहे कउन दुल्ह भइया
कउन आयं दुलहे के बाप
छोटी मोटी हथिनी संवारी साजी
सोनवा मढ़ाये ओखे दांत
सोनेन हउदा कसाये आवइं
ओई आयं दुलहे के बाप
जमुना के ईरे तीरे घोड़िला कुदावैं
बांधे बैजन्ती रंग पाग
सिर ऊपर कलंगी चमकत आवै
ओई आयं दुलहे के भाइ
छोटी मोटी डड़िया सम्हारी
छोटेन लगे कहार
माथे मौर सिर झमंकत आवइ
औई आयं दुलहे दमाद