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ककरा कहबै आ के करतै एतऽ भरोसक बात / बाबा बैद्यनाथ झा

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ककरा कहबै आ के करतै एतऽ भरोसक बात
निसाँखोर लग भऽ ने सकैए कखनो होशक बात

छै आलोचक सभ अनकर आ अपने मन सभ श्रेष्ठ
गुणकेर चर्चा काटय दौड़य करैए दोषक बात

छोट-पैघ सभ पकठायल छै क्यो ने एहिठाँ छोट
वृद्ध-कागसँ करू बन्धु नहि अपने पोसक बात

देस-विदेसक राजनीतिमे सभ पारंगत लोक
बता सकत नहि पुछिकऽ देखू टोल-पड़ोसक बात

कार्यालय लेल गुरुमन्त्र ई सीखि लिअऽ तऽ मौज
बस चमचाकेँ खुश राखू आ बिसरू बाँसक बात

सभ दिन सँ जे सहैत रहल छै शोषण, अत्याचार
ठंढा शोणित छै नहि सुनतै ककरो जोशक बात

भेटि गेल छै सभकेऽ ‘बाबा’ कुम्भकरण केर नीन्द
जागि रहल अछि नवतुरिया सभ ई संतोषक बात