भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कचरा बीननेवाला लड़का / कुमार सुरेश
Kavita Kosh से
कोई ऋतु मौजूद नहीं होती
अपने ख़ालिस रूप में
उस लड़के के पास
जो बीनता है कचरा
अपने छोटे हाथों से
सचमुच कोई ऋतु नहीं
न सुहानी बारिश
न हाड़ कँपाती ठंड
न आग बरसाती लू
बारिश का एक ही मतलब होता है
कीमती कचरे का पानी से
ख़राब हो जाना
गर्मी का भी एक मतलब
बहुत से कचरे का हो जाना
आग के हवाले
सर्दी का मतलब इकट्ठा किए
कचरे को ख़ुद करना
आग के हवाले
उसके सपने में भी कोई
मौसम नहीं आता
बारिश का पानी,
काग़ज़ की कश्ती भी नहीं
रंगीन स्वेटर, गर्म बोर्नविटा नहीं
कोई पहाड़ या झरना नहीं
कार्टून फिल्म या हैरी पॉटर भी नहीं
आता है अक्सर एक कचरे का पहाड़ ही
जिस पर वह
इस तरह ओंधा लेटा रहता है
कि कचरे और लड़के के बीच
फ़र्क़ करना मुश्किल होता है।