कचालोव के कुत्ते के लिए / सिर्गेय येसेनिन / वरयाम सिंह
ओ जिम ! दे ना मेरे हाथ तू अपना पंजा,
ऐसा पंजा देखा नहीं मैंने जन्म से ।
आ, भौंक ले दोनों मिलकर इस चाँदनी में
इस शान्त ख़ामोश मौसम पर।
अरे जिम! दे ना मेरे हाथ अपना पंजा !
कृपा कर, इतना न चाट मुझे
कोशिश तो कर मामूली-सी यह बात समझने की —
तुझे तो पता नहीं क्या होती है ज़िन्दगी
कितनी चुकानी पड़ती है क़ीमत ज़िन्दा रहने की ।
दयालु हैं तेरे मालिक और मशहूर भी,
आते रहते हैं बहुत मेहमान उनके यहाँ ।
तेरे मखमली बालों का स्पर्श पाने की
मुस्कराते हुए करता है कोशिश हर कोई ।
कुत्ते के रूप में अद्भुत सौंदर्य पाया है तूने
और साथ में इतना भोलापन !
किसी ने तनिक भी पूछे बिना
शराबी यार की तरह लपक पड़ता है चूमने ।
प्यारे जिम! देख तेरे मेहमानों में
लोग होते हैं छोटे-बड़े हर तरह के,
पर वह जो सबसे ज़्यादा उदास और ख़ामोश है
क्या उसका भी यहाँ आना हुआ है कभी?
आ शर्त लगाते हैं — वह आएगी
मेरे न होने पर तू झाँकना उसकी आँखों में ।
मेरे बदले तू चूमना उसके नाज़ुक हाथ,
क्षमा माँगना उसके लिए जिसमें मेरा दोष रहा हो या नहीं भी ।