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कच्चा मकान उसपे बरसात का भी डर है / सतपाल 'ख़याल'

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कच्चा मकान उसपे बरसात का भी डर है
छ्त सर पे गिर न जाए सहमी हुई नज़र है

तपती हुई ज़मीं की सुन ली है आसमाँ ने
बरसा है अपनी धुन मे हर कोना तर-ब-तर है

भीगे लिबास में से झलका बदन जो उसका
उसपे सब आशिकों की ठहरी हुई नज़र है

ग़म की तपिश से यारो थी सुर्ख़ लाल आँखें
ठंडक मिली है दिल को कुछ आँख आज तर है

टूटा है कहर उसपे सैलाब में घिरा जो
उसका ख़याल किसको जो शख़्स दर-ब-दर है.