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कच्ची-पक्की जस मिलि जाई / बोली बानी / जगदीश पीयूष
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कच्ची-पक्की जस मिलि जाई
हियनै रहिकै खइबा
हम ना सहरै जइबा
जो-जो सहरै गवा सो वापिस
लउटि न घर का आवा
हुवैंके हुइके रहिगे सबियों
का लरिकवा-बिट्यावा
जहाँ न जंगल अउरु चिरइया
हम कै दिन रहि पइबा
ना बिलारि चूहा मारै
ना बाँदर डाका डारैं
जहाँ न हरहन के कानन का
कउआ खूँटु निकारैं
जहाँ न हुक्का-आल्हा-सुरती
कइसन द्याँह जियइबा
मरती बेरा गाँव छोड़ि कै
हम कस सहरै जाई
अपनी-अपनी दउड़-भाग मा
को हमते बतलाई
बारह महिना याकै कोठरी मा
हम की बिधि सोइबा