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कच्चे थे कुछ गुरु जी के कान / गणेश पाण्डेय
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सुंदर केश थे गुरु जी के
चौड़ा ललाट, आँखें भारी
लंबी नाक, रक्ताभ अधर
उस पर गज भर की जुबान।
गजब का प्रभामण्डल था
कद-काठी, चाल-ढाल
सब दुरुस्त ।
जो छिपकर देखा किसी दिन
कच्चे थे कुछ गुरु जी के कान ।