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कच्छू, तेरी गंगा में डुबक-डुबक ! / कन्हैयालाल मत्त
Kavita Kosh से
कच्छू, तेरी गंगा में
डुबक-डुबक !
खुलकर नहाएँ,
हाथ नहीं आएँ,
लहरों में लुक-छुप,
तुझको छकाएँ।
तुझको अँगूठा दिखाएँ,
कि दूर किसी ओटक में
दुबक-दुबक !
कच्छू, तेरी गंगा में
डुबक-डुबक !
तू प्यारा कछुआ,
हम माँझी मछुआ,
पूरब की पुरवा,
पच्छिम की पछुआ।
हिल-मिलकर तुझको हँसाएँ,
कि भूल जाए तू नक़ली
सुबक-सुबक !
कच्छू, तेरी गंगा में
डुबक-डुबक !