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कछेक लोग यही ता-हयात करते रहे / नवीन सी. चतुर्वेदी
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कछेक लोग यही ता-हयात करते रहे।
अदालतन की नजर कागजात करते रहे॥
हम आसथा की नजर सों अगर न देखें तौ।
महान-लोग महा-पक्षपात करते रहे॥
इबादतन के पुजारी उपासना में मगन।
अदाबतन के रसिक रक्तपात करते रहे॥
हम अपनी जात के बारे में और का बोलें।
समस्त पन्थ हमें आत्मसात करते रहे॥
पबन के पुत्र नें गढ-लंक जब जराय दियौ।
बिफर-बिफर कें असुर तात-मात करते रहे॥
सकुन्तला के बिरह में बिलख-बिलख दुस्यन्त।
"तमाम रात सितारेन सों बात करते रहे"॥